563 ई. पू. वैदिक, ब्राह्मण एवं शैव धर्म मगधांचल के प्रचलन में था। समकालीन घेजन इन सभी धार्मिक धाराओं का केन्द्र बिन्दु बना। घेजन में कई पुरातात्विक अवशेष इन सभी तथ्यों की पुष्टि करते हैं। घेजन (गेजन) में बुद्ध की योग मुद्रासन में पांच फीट लंबी एवं चार फीट चौड़ी विशालकाय काले पत्थर की मूर्ति मिली है। मूर्ति आभूषणों से युक्त मुकुट धारण किए हुए है।पद्मासन एवं योगमुद्रा में ध्यानमग्न है। साथ ही भूमिपस्त मुद्रा में भी एक मूर्ति मिली है, जिसे चारों ओर बुद्ध के जीवन का चित्रण किया गया है। शिला एवं शिलालेख भी ज्ञात हुआ है। शिला चुलि प्राकृतिक चुल्ली के नाम से विख्यात है। एक सिरविहीन मूर्ति के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिस पर पालि भाषा में शब्द उल्लेखित है। घेजन गढ़ में अन्य कई मूर्तियां मिली हैं। गढ़ की खुदाई होने पर अन्य को पुरातात्विक अवशेष प्राप्त होने की संभावना है। पुरातात्ववेत्ताओं के अनुसार घेजन गढ़ के मध्य स्थित भूमि में बुद्ध एवं हिन्दु मंदिर छिपे होने की संभावना है। खुदाई पर बौद्ध स्तूप भी मिल सकता है। बौद्ध संगीतियों के प्रभाव से महायान के प्रादुर्भाव से मूर्ति पूजा प्रारंभ हुई एवं तत्कालीन राजाआें द्वारा यहां चैत्यों का निर्माण कराया गया। तत्पश्चात् महायान का केन्द्र
जेहनाबाद
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