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नालंदा का खंडाहार

यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था| पटना से ८३ किलोमीटर दक्षिण - पूर्व और राजगीर से १६ किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज करा देते हैं| महायान बौद्ध धर्म के शिक्षा - केंद्र में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे| इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया , जापान , चीन , तिब्बत , इंडोनेशिया , फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे| नालंदा के  विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे| इस विश्वविद्यालय को नौवीं शताब्दी से बारहवीं  शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी| अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शताब्दी में भारत के इतिहास को पढ़ने आये चीनी यात्री ह्वेनसांड़ तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से भी इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है|

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नालंदा

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