गुरुद्वारा हांड़ी साहिब जो एक समय हांड़ीवाली संगत कहलाता था, का इतिहास उस समय के साथ जुड़ा है जब छः वर्ष के गुरु गोविन्द सिंह पंजाब के मार्ग पर अग्रसर थे। जैसा कि कहानी है, यहाँ बालक गोविन्द राय और माता गुजरी ने पटना से बाहर अपना पहला डेरा लगाया था और माई प्रधानी, गुरु तेग बहादुर जी की पुरानी भक्तिन ने उन्हें खिचड़ी (उबले हुए चावल और मसूर की दाल ) की एक हांड़ी परोसी थी । आज उसी स्थान पर हांड़ी साहिब नामक एक सुन्दर गुरुद्वारा मौजूद है और आस पास के क्षेत्र में प्रमुख स्थान रखता है । यहाँ हर रोज अभी भी खिचड़ी परोसी है इसका तीन तरफ प्रांगण सहित एक छोटा दरबार है और चारदीवारी युक्त परिसर है ।
इस गुरूद्वारे की एक अनूठी परंपरा गोधूलि पश्चात खेलकर वापस आने पर पूजा करने की गोविन्द राय की स्मृति में संध्या में देर से प्रार्थना करना है । यहाँ तख्त श्री हरमंदिर साहिब जी पटना के प्रबंधन के अंतर्गत एक सालाना जलसा भी आयोजित किया जाता है ।
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